राष्ट्रीय

सुप्रीम कोर्ट ने रद्द किया इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम, कहा- सूचना के अधिकार का उल्लंघन

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को इलेक्ट्रोल बांड मामले में सर्वसम्मति से फैसला सुनाया है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि मतदाताओं (Voters) को वोट डालने के लिए जानकारी पाने का अधिकार है और राजनीतिक दल चुनावी प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जनवरी 2018 में लॉन्च किया गया, चुनावी बांड वित्तीय साधन हैं, जिन्हें व्यक्ति या कॉर्पोरेट संस्थाएं बैंक से खरीद सकती हैं और एक राजनीतिक दल को पेश कर सकती हैं, जो बाद में उन्हें धन के लिए भुना सकता है। कोर्ट ने कहा कि लोगों को भी इस बारे में जानने का अधिकार है। बड़े चंदे गोपनीय रखना असंवैधानिक है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारतीय स्टेट बैंक (SBI) 2019 के अंतरिम आदेश से अभी तक चुनावी बांड योगदान प्राप्त करने वाले दलों का विवरण प्रस्तुत करेगा। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि जब कानून राजनीतिक योगदान की अनुमति देता है, तो यह योगदानकर्ताओं की संबद्धता को भी इंगित करता है, और उनकी रक्षा करना संविधान का कर्तव्य है। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘उन पार्टियों को भी योगदान दिया जाता है जिनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। बदले में योगदान राजनीतिक समर्थन का प्रदर्शन नहीं है। संविधान केवल दुरुपयोग की गुंजाइश के कारण आंखें नहीं मूंदता है।

क्या होता है इलेक्ट्रोल बांड?
इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक वित्तीय जरिया है। भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी और 29 जनवरी 2018 को कानून लागू कर दिया था। यह एक वचन पत्र की तरह है। इसकी मदद से भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक SBI के जरिए राजनीतिक पार्टियों को दान कर सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *