Saturday, December 9, 2023
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OPINOIN: कौन हैं हिन्दू बहुमत और संविधान पर अपने बयानों से चर्चा में आने वाले नितिन पटेल

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राजीव पाठक

गुजरात के उप-मुख्यमंत्री नितिन पटेल आजकल अपने एक बयान की वजह से सुर्खियों में हैं. उन्होंने कहा है कि जब तक हिन्दू बहुमत में है तभी तक देश में संविधान, लोकतंत्र, कोर्ट-कचहरी वगैरह का वजूद है. अगर आज से एक हजार या अधिक वर्षों में हिन्दू बहुमत में नहीं रहेंगे, अगर दूसरे धर्म के लोग बहुमत में आ जायेंगे तो देश में लोकतंत्र, लोकसभा, संविधान वगैरह सब कुछ दफना दिये जायेंगे. अपने इस बयान की वजह से देशभर में नितिन पटेल कई लोगों के निशाने पर हैं, क्योंकि संवैधानिक पद पर रहने वाले बहुत कम लोगों द्वारा ऐसी बात कही गई है.

तो आइये आपको बताते हैं कि कौन हैं गुजरात के ये नेता नितिन पटेल और क्या रहा है उनका राजनैतिक सफर:

गुजरात के महेसाणा ज़िले में 22 जून, 1956 को पैदा हुए हैं नितिन पटेल. जन्म जिस परिवार में हुआ वो पहले से ही धनाढ्य परिवार था और किशोरावस्था से ही नितिन पटेल राजनीति के क्षेत्र में कूद पड़े थे. गुजरात में हुए नवनिर्माण आंदोलन में उन्होंने कडी इलाके के महामंत्री के तौर पर हिस्सा लिया था. बहुत पहले से वो भाजपा के साथ जुड़ गये थे. उनके करीबी कहते हैं कि भाजपा के साथ जुड़ने में सबसे महत्वपूर्ण उनका हिन्दुत्व की विचारधारा के प्रति लगाव था.

हिन्दुत्व के सबसे बड़े चुनाव में हार
नितिन पटेल भले ही हिन्दुत्व की विचारधारा से जुड़ने की वजह से भाजपा में आए हों, लेकिन भारतीय इतिहास में हिन्दुत्व की राजनीति ने सबसे बड़ी करवट ली थी गुजरात विधानसभा के 2002 चुनावों में. गुजरात में दंगों के बाद हिन्दुत्व की विचारधारा पर चुनाव हो रहे थे और नरेन्द्र मोदी पूरे देश में हिन्दू हृदयसम्राट के तौर पर प्रोजेक्ट हो रहे थे. इन चुनावों में भारी जीत से नरेन्द्र मोदी सबसे बड़े हिन्दू नेता के तौर पर पूरे देश में स्थापित हो गए. जहां नरेन्द्र मोदी की ये सबसे बड़ी जीत थी और भाजपा भारी बहुमत से जीती थी, तब कडी के अपने विधानसभा क्षेत्र से नितिन पटेल हार गए थे.

उत्तर गुजरात के पटेल नेता
उत्तर गुजरात में तीन सबसे बड़े समुदाय हैं जो राजनैतिक रसूख रखते हैं. सबसे पहले पटेल जो कि आर्थिक रूप से सबसे समृद्ध माने जाते हैं, दूसरे ठाकोर जो ओबीसी में आते हैं, लेकिन जनसंख्या के आधार पर उनका राजनैतिक महत्व बहुत ज्यादा है, तीसरे हैं चौधरी समुदाय जो कि सहकारी क्षेत्र में अच्छा रसूख रखते हैं और जनसंख्या भी ज्यादा है इसलिए वो भी अच्छा रसूख रखते हैं. लेकिन आर्थिक रूप से सबसे समृद्ध जाति होने के नाते पटेलों का सभी पर प्रभुत्व ज्यादा है. दूसरे ये भी की 1985 में गुजरात में ओबीसी आरक्षण को लेकर हुए आंदोलन के बाद पटेल समुदाय भाजपा के साथ मजबूती से खड़ा रहा है. इसलिए भी पटेल नेता को भाजपा में ज्यादा महत्व मिलता रहा है, लेकिन उत्तर गुजरात के पटेल ज्यादातर कडवा पटेल होते हैं और सौराष्ट्र के पटेल ज्यादातर लेउवा पटेल होते हैं. लेउवा पटेल जनसंख्या की दृष्टी से कडवा पटेलों से कहीं ज्यादा हैं इसलिए जब पार्टी में पद की बात आती है तो लेउवा पटेलों को हंमेशा से ज्यादा तवज्जो मिलती रही है, लेकिन लंबे समय से ही पूरे उत्तर गुजरात में नितिन पटेल भाजपा के सबसे दिग्गज पटेल नेता के तौर पर अपना स्थान मजबूती से रखते आये हैं.

गुजरात में पोस्ट-मोदी एरा में नितिन पटेल
जब तक गुजरात में नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री रहे थे तब तक और किसी के पार्टी में कमान संभालने की कोई संभावना ही नहीं थी क्योंकि भारी लोकप्रियता के चलते नरेन्द्र मोदी का कभी कोइ चैलेन्जर नहीं रहा. तब 2014 में नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने और पूरे देश में भाजपा का परचम लहराया तब गुजरात में भी अन्य नेताओं के उभरने की गुंजाइश पैदा हुई, लेकिन पहले आनंदीबेन पटेल मुख्यमंत्री बनीं, तब भी नितिन पटेल नंबर दो पर ही रहे. इस दौरान पटेल (पाटीदार) समुदाय ने ओबीसी में अपने आरक्षण के लिए बड़ा आंदोलन छेड़ा, भाजपा के ही कुछ हल्कों में दबी जुबान में ये बातें भी चलती रहीं कि कहीं नितिन पटेल तो इस आंदोलन के पीछे नहीं हैं.. लेकिन इसके कभी प्रमाण नहीं मिले और नितिन पटेल के करीबी भी इसे इसी तौर पर देखते रहे कि नितिन पटेल के पार्टी में कद को छोटा करने के लिए इस तरह के बेबुनियाद आरोप लगते रहते हैं. बहरहाल, इस आंदोलन की पृष्ठभूमि में 2015 के दिसम्बर में हुए स्थानीय चुनावों में भाजपा को ग्रामीण इलाकों में भारी नुकसान उठाना पड़ा और धीरे-धीरे आनंदीबेन पटेल दबाव में आने लगीं. आखिर अगस्त 2016 में आनंदीबेन ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया.

मुख्यमंत्री बनते-बनते रह गए
आनंदीबेन पटेल के इस्तीफे के बाद फिर से भाजपा के भीतर नए मुख्यमंत्री की तलाश शुरु हुई. काफी लॉबिंग हुई, आखिर वो दिन आया, 4 अगस्त शाम को विधायकों की मुलाकात तय की गई. पार्टी में सुबह से ही अटकलों का दौर गर्म था, मुख्यमंत्री पद के लिए कई नामों की चर्चा हो रही थी और उनमें नितिन पटेल का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा था. सुबह करीब 10 बजे ही ये लगभग तय माना जाने लगा कि नितिन पटेल ही गुजरात के अगले मुख्यमंत्री होंगे. स्थानीय और राष्ट्रीय चैनलों ने अगले मुख्यमंत्री के तौर पर नितिन पटेल के इन्टरव्यु तक कर लिए. आम तौर पर मीडिया से अच्छी दोस्ती रखने वाले नितिन पटेल ने खुलकर लोगों की बधाइयों का स्वागत भी किया और बिना झिझक इन्टरव्यु भी दिये. फिर शाम 4 बजे भाजपा के नये बने कार्यालय कमलम में विधायकों की मीटिंग शुरू हुई. पहले लगा कि कुछ मिनिटों में नितिन पटेल के नाम की घोषणा हो जाएगी, लेकिन मीटिंग लम्बी चली. करीब एक घंटे के बाद प्रभार देख रहे वी. सतीश बाहर आए और सीधा कॉन्फ्रेंस रूम में जाकर किसी से फोन पर लंबी बात की. तब लगा कि मामला कुछ गड़बड़ा गया है, लेकिन फोन पर बात करने के बाद वी. सतीश फिर विधायकों की बैठक में गए और कुछ ही मिनिटों में मुख्यमंत्री के तौर पर विजय रूपाणी के नाम की घोषणा कर दी गई. सभी लोग सन्न रह गए. फिर से नितिन पटेल को नंबर दो बनाया गया और दो दिन बाद उन्होंने बतौर उप-मुख्यमंत्री की शपथ ली. लगा की नितिन पटेल को बड़बोलापन भारी पड़ा.

2017, एक बार फिर खाई मात
2017 में फिर से गुजरात के विधानसभा के चुनाव हुए. भाजपा बहुत कम बहुमत से चुनाव जीती. पार्टी में फिर से ये चर्चा जोर पकड़ने लगी कि विजय रूपाणी को शायद बदला जा सकता है. फिर से नितिन पटेल के नाम की चर्चा बतौर अगले मुख्यमंत्री के लिए ज़ोर पकड़ने लगी, लेकिन दोबारा मुख्यमंत्री का ताज विजय रूपाणी के सर पर ही रखा गया. इस बार भी नितिन पटेल को नंबर दो से ही संतोष करना पड़ा. उन्हें दोबारा उप-मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन नितिन पटेल थे, तो बिना विवाद कैसे सब कुछ ठीक हो जाता. इस बार नितिन पटेल उप-मुख्यमंत्री तो बने, लेकिन उन्हें वित्त विभाग नहीं मिला और वो राज्य के वित्त मंत्री नहीं बनाये गए, उन्हें स्वास्थ्य विभाग दिया गया. भाजपा में चर्चा जग गई कि नितिन पटेल कट टु साइज़ हो गए हैं, लेकिन नितिन पटेल नाराज़ हो गए थे. उन्होंने पार्टी आलाकमान को कह दिया कि अगर उन्हें वित्त मंत्री नहीं बनाया गया तो वो इस बार किसी अन्य विभाग का चार्ज नहीं लेंगे. नितिन पटेल के अहमदाबाद के निवास पर भाजपा नेताओं का तांता लग गया, बहुत मान मुनव्वल की गई, लेकिन नितिन पटेल इस बार आर-पार की लड़ाई के पक्ष में दिखे. आखिरकार दो दिन बाद पार्टी को झुकना पड़ा और नितिन पटेल को वित्त मंत्री बनाना पड़ा, तब जाकर वो माने.

पटेल की लोकप्रियता
ये तो हुई विवादों की बातें, लेकिन उनके कुछ गुण ऐसे भी हैं जिसकी वजह से पार्टी में अब भी उनका जलवा बरकरार है. शायद ही देश में दूसरा कोइ उप-मुख्यमंत्री होगा, जो अपना पब्लिक मोबाइल नंबर खुद उठाए. अगर नितिन पटेल को कोई भी आम नागरिक फोन करे, तो शायद ही उनके पीए उठायेंगे, अगर वो मीटिंग में नहीं हैं तो नीतिन पटेल खुद ही अपना फोन उठायेंगे. जनता से सीधा सम्पर्क वाला ऐसा कोई नेता भाजपा में नहीं है और दूसरी बात यह भी कि भले ही वो मुख्यमंत्री नहीं हैं, लेकिन हमेशा नितिन पटेल के दफ्तर में गुजरात के अलग-अलग जगहों से मिलने आनेवाले लोगों की संख्या अन्य किसी भी मंत्री से ज़्यादा होती है. और जनता से मिलने के दिन जो भी एक बार आया हो, भले ही वक्त लगे, लेकिन उनसे नितिन पटेल की मुलाकात तो हो ही जाती है. इतना ही नहीं, प्रशासन पर भाजपा में सबसे ज्यादा पकड़ उन्हीं की बताई जाती है.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)

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