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नई दिल्ली. तालिबान अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अपनी एक साफ-सुथरी छवि पेश करने की कोशिश कर रहा है. दरअसल, कट्टरपंथी इस्लामिक समूह अफगानिस्तान में 1996 से 2001 तक के कुख्यात शासन की बर्बरता से अपने हाथ धोने की कोशिश में है. एक ओर काफी हद तक महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों को लेकर चर्चा हो रही है, वहीं विशेषज्ञों ने शिक्षा पर होने वाले प्रतिकूल प्रभावों की ओर भी इशारा किया है.
सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ आर्म्ड ग्रुप्स द्वारा इस साल फरवरी में प्रकाशित ‘तालिबान दृष्टिकोण और शिक्षा के प्रति नीतियां’ नाम के एक वर्किंग पेपर के अनुसार, 2009 से तालिबान की नीति औपचारिक रूप से शिक्षा पर हमलों और स्कूलों को बंद करने के खिलाफ रही है. वर्तमान नीति स्कूलों को खुला रखने और शिक्षा तक पहुंच बनाए रखने पर जोर देती है – जब तक कि उन्हें बंद करने का कोई अनिवार्य कारण न हो.
हालांकि, तालिबान के विचार में, यदि कोई दुश्मन लड़ाका एक शैक्षणिक संस्थाओं पर कब्जा कर लेता है, तो वह अपनी बचाव वाली स्थिति खो देता है और एक सैन्य वस्तु बन जाता है, जिसके बाद उस पर हमला किया जा सकता है. यह स्कूलों और शिक्षा कर्मचारियों की सुरक्षा के संबंध में तालिबान के अन्य सार्वजनिक बयानों के मुताबिक है. ऐसे संकेत भी मिले हैं कि कोविड-19 महामारी के दौरान स्कूल बंद होने से लड़ाकों द्वारा (बंद) स्कूलों पर कब्जा बढ़ गया है.
ऐसा भी जाहिर होता है कि तालिबान ने चुनावों में मतदान केंद्रों के तौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले स्कूलों को हमले के लिए सही लक्ष्य माना. उदाहरण के लिए, 2018 के संसदीय चुनावों के दौरान, संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में यूएनएएमए मानवाधिकार 2019 में शिक्षा को प्रभावित करने वाली 92 चुनाव संबंधी घटनाओं की सूचना दी, जिनमें से अधिकांश के लिए तालिबान जिम्मेदार था.
इसी तरह से यूएनएएमए मानवाधिकार, 2020 रिपोर्ट के मुताबिक 2019 में, जब राष्ट्रपति चुनाव हुए थे, संयुक्त राष्ट्र ने स्कूलों को प्रभावित करने वाली चुनाव संबंधी हिंसा की 21 घटनाएं दर्ज कीं, लेकिन इसमें यह नहीं बताया गया कि इन घटनाओं के लिए कौन जिम्मेदार था. संयुक्त राष्ट्र, न्यूयॉर्क टाइम्स और ह्यूमन राइट्स वॉच, अन्य लोगों के बीच, ऐसे उदाहरणों के कई दस्तावेज उपलब्ध हैं जहां विद्रोहियों (तालिबान) पर हमला करने, धमकी देने या स्कूलों को बंद करने का आरोप लगा है.
2002 से, अफगान सरकार के नियंत्रण वाले शहरों में, लाखों अफगान लड़कियां स्कूल जा चुकी हैं और अफगान महिलाओं ने सार्वजनिक जीवन में भाग लिया है. इस दौरान महिलाओं ने बड़ी संख्या में राजनीतिक पद भी धारण किए और ऐसा अफगानिस्तान के इतिहास में पहली बार हुआ. हालांकि, तालिबान आधिकारिक तौर पर कहता है कि वे अब लड़कियों की शिक्षा का विरोध नहीं करते हैं. वास्तव में तालिबान के बहुत कम अधिकारी ही लड़कियों को युवावस्था से पहले स्कूल जाने की अनुमति देते हैं. अन्य लड़कियों को स्कूल जाने की बिल्कुल भी इजाजत नहीं दी जाती है.
कुछ जिलों में, तालिबान ने शिक्षकों के वेतन पर ‘कर’ लगाया है और उन शिक्षकों एवं निवासियों को धमकी दी है जिनके रिश्तेदार उन स्कूलों में पढ़ाते हैं जो सरकार के नियंत्रण वाले क्षेत्रों के नजदीक हैं. तालिबान अधिकारियों ने दावा किया है कि जिलों और प्रांतों के बीच शिक्षा तक पहुंच में अंतर सुरक्षा मुद्दों और समुदायों के भीतर लड़कियों की शिक्षा की मंजूरी के विभिन्न स्तरों के कारण है.
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