Tuesday, December 5, 2023
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एल्गार परिषद मामले के आरोपियों की साजिश से भारत की संप्रभुता और सुरक्षा को खतरा: NIA

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मुंबई. महाराष्ट्र की एक अदालत में भीमा कोरेगांव (Bhima Koregaon case) हिंसा से संबंधित एल्गार परिषद मामले (Elgar Parishad case) में 22 आरोपियों के खिलाफ NIA ने अपनी ड्राफ्ट चार्जशीट की है. एनआईए (NIA) ने कहा, “सरकार या नागरिक अधिकारियों / सार्वजनिक पदाधिकारियों” के खिलाफ आरोपियों की साजिश भारत की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा है.” साथ ही इसी ड्राफ्ट में कहा है कि कुछ छात्रों को आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए भर्ती किया गया था. इनमें से कई, प्रसिद्ध शिक्षण संस्‍थान और विश्‍वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे.

न्‍यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक इस ड्राफ्ट में कहा गया है कि दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय और साथ ही टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुछ छात्रों को आतंकी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए भर्ती किया गया था. ड्राफ्ट चार्जशीट में, एनआईए ने कहा कि आरोपियों ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ युद्ध छेड़ने की साजिश रची थी. उनका कहना है कि आरोपियों ने नेपाल और मणिपुर से “400000 राउंड और अन्य हथियारों के साथ M4 (एडवांस्‍ड हथियार) की वार्षिक आपूर्ति” के लिए 8 करोड़ रुपये की मांग और व्यवस्था करने की भी साजिश रची थी.

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भीमा-कोरेगांव क्या है?
भीम कोरेगांव महाराष्ट्र के पुणे जिले में है. इस छोटे से गांव से मराठाओं का इतिहास जुड़ा है. 200 साल पहले यानी 1 जनवरी, 1818 को ईस्ट इंडिया कपंनी की सेना ने पेशवा की बड़ी सेना को कोरेगांव में हरा दिया था. पेशवा सेना का नेतृत्व बाजीराव II कर रहे थे. बाद में इस लड़ाई को दलितों के इतिहास में एक खास जगह मिल गई. बीआर अम्बेडकर को फॉलो करने वाले दलित इस लड़ाई को राष्ट्रवाद बनाम साम्राज्यवाद की लड़ाई नहीं कहते हैं. दलित इस लड़ाई में अपनी जीत मानते हैं. उनके मुताबिक इस लड़ाई में दलितों के खिलाफ अत्याचार करने वाले पेशवा की हार हुई थी.

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हर साल जनवरी में यहां क्या होता है?
हर साल जब 1 जनवरी को दुनिया भर में नए साल का जश्न मनाया जाता है उस वक्त दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगांव में जमा होते है. वो यहां ‘विजय स्तम्भ’ के सामने अपना सम्मान प्रकट करते हैं. ये विजय स्तम्भ ईस्ट इंडिया कंपनी ने उस युद्ध में शामिल होने वाले लोगों की याद में बनाया था. इस स्तम्भ पर 1818 के युद्ध में शामिल होने वाले महार योद्दाओं के नाम अंकित हैं. वो योद्धा जिन्हें पेशवा के खिलाफ जीत मिली थी.

जनवरी 2018 में यहां क्या हुआ था और क्यों भड़की थी हिंसा?
साल 2018 में इस युद्ध का 200वां साल था. ऐसे में यहां भारी संख्या में दलित समुदाय के लोग जमा हुए थे. जश्न के दौरान दलित और मराठा समुदाय के बीच हिंसक झड़प हुई थी. इस दौरान इस घटना में एक शख्स की मौत हो गई जबकि कई लोग घायल हो गए थे. इस बार यहां दलित और बहुजन समुदाय के लोगों ने एल्गार परिषद के नाम से शनिवार वाड़ा में कई जनसभाएं की. शनिवार वाड़ा 1818 तक पेशवा की सीट रही है. जनसभा में मुद्दे हिंदुत्व राजनीति के खिलाफ थे. इस मौके पर कई बुद्धिजीवियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाषण भी दिए थे और इसी दौरान अचानक हिंसा भड़क उठी. जांच के दौरान एजेंसियों ने देशभर में छापेमारी की और नक्‍सली संबंधों के आधार पर कई लोगों को गिरफ्तार किया.

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