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नयी दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय (DELHI HIGH COURT) ने उस अर्जी पर केंद्र से जवाब मांगा है जिसमें अर्धसैनिक बलों ( Paramilitary Forces) को नई अंशदायी पेंशन योजना से बाहर रखने का अनुरोध किया गया है. न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति नवीन चावला की पीठ ने 27 अगस्त के आदेश में कहा, ‘‘नोटिस जारी किया जाए. जवाबी हलफनामा चार सप्ताह के भीतर दायर किया जाए. यह आदेश उस ट्रस्ट की एक अर्जी पर पारित किया गया था जो सशस्त्र बलों और उनके परिवारों के लिए काम करने का दावा करता है.
‘हमारा देश हमारे जवान ट्रस्ट’ की याचिका में केंद्र को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि वह गृह मंत्रालय (एमएचए) के तहत आने वाले बलों को रक्षा मंत्रालय के तहत आने वाले सशस्त्र बलों की तरह ही पुरानी पेंशन योजना में शामिल करे. अर्जी एक ही मुद्दे को उठाने वाली उन याचिकाओं में दायर की गई थी जो अदालत के समक्ष विचाराधीन हैं. गत 12 अगस्त को, मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल की अध्यक्षता वाली पीठ ने उसी मुद्दे पर ट्रस्ट की जनहित याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया था, जिसे बाद में अन्य कानूनी उपायों का लाभ उठाने या लंबित कार्यवाही में शामिल होने की स्वतंत्रता के साथ वापस ले लिया गया था.
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अदालत ने कहा था कि एक ही मुद्दे पर कई याचिकाओं की आवश्यकता नहीं है और उसने ट्रस्ट से कहा था कि वह लंबित कार्यवाही में ही शामिल हो. फरवरी 2020 में, एक खंडपीठ ने एक सीआरपीएफ कर्मी की उस अर्जी पर नोटिस जारी किया था जिसमें पेंशन के संबंध में सेना, नौसेना और वायुसेना के समान व्यवहार करने का अनुरोध किया गया था. इसके बाद, अन्य कर्मियों द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष कई अन्य याचिकाएं दायर की गईं.
अधिवक्ता अजय के अग्रवाल के माध्यम से दायर अर्जी में, ट्रस्ट ने कहा कि प्राधिकारी गृह मंत्रालय के तहत आने वाले बलों यानी बीएसएफ, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ आदि को 2004 में लायी गई नयी अंशदायी पेंशन योजना के अधीन बनाकर उन्हें यह कहते हुए पुरानी पेंशन देने से इनकार कर रहे हैं कि वे ‘संघ के सशस्त्र बल’ नहीं हैं. याचिका में कहा गया है कि पुरानी पेंशन योजना से एमएचए के तहत आने वाले बलों को बाहर करना भेदभावपूर्ण और समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन है. सभी याचिकाओं को कागजी कार्यवाही पूरी करने के लिए 7 दिसंबर को संयुक्त रजिस्ट्रार के समक्ष सूचीबद्ध किया गया है.
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