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शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था लेकिन पुलिस द्वारा दायर अपीलों पर सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की थी और जेएनयू छात्राओं नताशा नरवाल और देवांगना कलिता और जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के छात्र आसिफ इकबाल तन्हा को नोटिस जारी करके उनसे जवाब मांगे थे.
18 जून को कोर्ट ने दिया था ये स्पष्टीकरण
शीर्ष अदालत ने अपने 18 जून के आदेश में स्पष्ट किया था कि जमानत पर इन छात्रों की रिहायी में इस स्तर पर हस्तक्षेप नहीं किया जा रहा है. याचिकाओं पर सुनवायी न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ द्वारा बृहस्पतिवार को की जाएगी.
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने यह दलील दी थी कि उच्च न्यायालय ने तीन छात्र कार्यकर्ताओं को जमानत देते हुए पूरे यूएपीए को पलट दिया है. इस पर गौर करते हुए पीठ ने कहा था, ‘‘यह मुद्दा महत्वपूर्ण है और इसके पूरे भारत में असर हो सकते हैं. ’’ मेहता ने कहा था कि उस समय हुए दंगों के दौरान 53 लोगों की मौत हो गई थी और 700 से अधिक घायल हो गए थे, जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति और अन्य गणमान्य व्यक्ति यहां थे.
उच्च न्यायालय ने कहा था कि यूएपीए की धारा 15 में ‘‘आतंकवादी कृत्य’’ की परिभाषा यद्यपि व्यापक और कुछ अस्पष्ट है लेकिन इसमें आतंकवाद के आवश्यक लक्षण होने चाहिए और ‘‘आतंकवादी कृत्य’’ वाक्यांश के बेरोकटोक इस्तेमाल की उन आपराधिक कृत्यों के लिये इजाजत नहीं दी जा सकती जो स्पष्ट रूप से भारतीय दंड विधान के दायरे में आते हैं.
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